OSHO: सक्रीय ध्यान फिर विपस्सना Sakriy Dhyan Fir Vipassana
“मेरा मानना है कि बीसवीं सदी में किसी भी व्यक्ति को अगर ध्यान की ऊंचाइयों पर जाना है, तो सक्रिय-ध्यान से ही शुरू करना पड़ेगा। क्योंकि जो हजारों तरह की दमित वासनाएं भीतर पड़ी हैं, उनको सक्रिय-ध्यान उलीच कर बाहर कर देता है।” ...